Thursday, November 15, 2018

हम भी निकलें....


कुछ लकीरें मारी थी कोरे कागज़ पर कुछ ज़िन्दगी के अफसाने निकले कुछ ज़िन्दगी जीने के बहाने निकले कुछ सजीले से सपने निकले हम चले तो थे घर से अकेले ही पथ पर कुछ जाने पहचाने निकले मौत से भी रूबरू होना है अभी वक्त ख़त्म हो तो हम भी निकलें                                   


तुम्हारे ख़याल से अब ये दिल न बेहलेगा तुम ख़्वाब बन आओ तो क्या न आओ तो क्या

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