Thursday, November 15, 2018

बचपन....



बचपन में ही बसता था जीवन
अब तो बस जीना पड़ता है
हर ज़हर चुपचाप पीना पड़ता है
दिल के जख्मों को खुद सीना पड़ता है
अँधरे में ही रोना पड़ता है
कोई देख न ले बेसब्र बहते नीर

                                                                





अब की फिर यादों की गलियों से धुँआ उठा है
लगता है कोई ग़म दिल ए गर्द से फिर उठा है

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