Wednesday, May 17, 2017

नदी का बहाव


शाम ढलने को थी ऑफिस से निकलने का समय नज़दीक था. रवि बेचैन सा बैठा घड़ी की तरफ एक टक देख रहा थामानो समय के उस पार कोई उसका इंतज़ार कर रहा हो। तभी रमाकांत ऑफिस बॉय ने उसके मेज़ पर एक फाइल पटक दी और कहा साहेब ने कहा है इसकी ऑडिट कर के जाना कल मीटिंग है डायरेक्टर्स की रवि ने ऑफिस बॉय से एक कप चाय लाने को कहा तथा फाइल उठा कर काम पर लग गया उसने जल्दी-जल्दी अंकों का मिलाप और ऑडिट शुरू कर दी एक हाथ से कैलकुलेटर चलाता होआ शताब्दी-एक्सप्रेस की रफ़्तार से पन्ने पलटने लगा इतने में ऑफिस बॉय ने चाय मेज़ पर रखी और पूछने लगा साहेब बड़ी जल्दी काम कर रहे हो मानो कोई ट्रेन छोट जाएगी आपकी, रवि रमाकांत तुझे क्या बताओं कुछ ऐसी ही बात है मगर बॉस को छुट्टी के वक़्त काम याद आता है अभी काम ख़तम करने दे जरा बातें बाद में कर लूँगा। रवि काम ख़तम कर ऑफिस से अपना बैग लिए भागा ऑफिस से मानो स्कूल की बेल बजते ही बच्चे भागते है जैसे ही बस स्टैंड में पहुंचा उसका सारा उत्साह ख़तम हो गया वो अपना मुह लटकाए बस पकड कर घर पहुंचा.

अगली सुबह रवि जल्दी उठ कर तयार होने लगा और घर से निकलने लगा तभी माँ की आवाज़ आई बेटा बिना नाश्ता किये जा रहे हो ऐसी भी क्या नुकरी करनी नाश्ता कर के जाओ रवि माँ को समझाता होआ बोला माँ आज डायरेक्टर्स की मीटिंग है जल्दी पहुंचना जरुरी है और दरवाज़े से बहार हो लिया. रवि बस स्टैंड आज समय से पहुँच गया था तभी सामने से आती मीना दिखी रवि एक टक उसे देखता होआ अपने दिल की धडकने छुपा रहा था तभी मीना उसके पास आकर बोली ‘अरे! आज तो तुम समय से आ गए क्या बात है’ रवि क्या बोलता वही डायरेक्टर्स का बहाना चिपका दिया और पोछने लगा कल तुम ऑफिस नही आई  थी क्या ,मीना आई तो थी शायद तुम पहले निकल गए थे रवि समझ गया की वो फाइल की वजह से लेट होआ था पर क्या बोलता आज वो समय से पहुँच गया था उसके लिए येही बड़ी बात थी .उसने बात आगये बढ़ाते होए पुछा मीना तुम कभी शिमला गयी हो मीना नही क्यों पूछ रहे हो क्या शिमला जा रहे हो रवि नही ऐसे ही आजकल यहाँ गर्मी बढती जा रही है तो मन में शिमला के बारे में विचार आ रहे थे की वहां क्या मुसम होगा इस वक़्त वहां के लोग कितने खुशनसीब हैं मीना बात सही है पर ठण्ड में तो वहां कुल्फी जम जाती है लोगों की उसकी भी तो सोचो

Thursday, May 4, 2017

अब ना कोई कृष्ण आएगा


अब ना कोई कृष्ण आएगा

अब यहाँ बस अदालत के चक्कर हैं ध्रितराष्ट्र बैठा है गदी में  और सब यहाँ दुर्योधन के वंसज हैं,
अब ना कोई कृष्ण आएगा बचाने को न भीम खून बहाने को यहाँ  सब दुर्योधन के वंसज हैं